इस स्केच में मैंने लक्ष्मण जी को बाण लगने के बाद श्री हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाने और राम के विलाप को दर्शाने की कोशिश की है...उम्मीद है आपको पसंद आएगा।
इस स्केच का नाम मैंने रक्खा था 'द रियल सेल्फ' ..इसको उल्टा पुल्टा करके देखा जा सकता.इसलिए मैंने दोनों तरफ की तस्वीर आपकी सुविधा के लिए अपलोड की है..हमारे मानस में धर्म को लेकर जो उथल पुथल है ,उसको समाहित करने की कोशिश की है इसमें हमने।
इस रेखाचित्र (स्केच) का शीर्षक मैंने रक्खा है " मनुष्य और सर्प" ...शायद हमारे मन के भीतर के "दर्प" को यह प्रतिबिंबित करता है...फन काढ़े हुए हमारा 'दर्प"...जो हमारे भीतर पल रहा बन कर "सर्प"।
इस स्केच का नाम मैंने 'व्यक्तिव की विकृति' रक्खा है। इसको स्केच करने के बाद मैंने कुछ पंक्तियाँ लिखी जो शायद आप पढ़ पायें..आपकी सुविधा के लिए दुबारा उसे नीचे प्रस्तुत कर रहा...
वर्ष १९९० में बनाया गया यह स्केच मनुष्य के भीतर की पाशविक प्रवृत्ति को दिखता है...हालाँकि इस पशुता में हिंसा नहीं जो ब्याघ्र मन में है...इस पशु वृत्ति की आँखें हिंसक नहीं वरन प्रेम से सराबोर हैं.
इस चित्र का नाम मैंने "चेहरा" रक्खा है...इसे बनाते समय शायद सर्रे के सारे चेहरे गड्ड मड्ड हो गए से लगते हैं....यही विडम्बना है की हम समझ नहीं पाते उनकी महत्ता...
यह स्केच १९८८ में ही बनाया गया था यूँ ही बैठे ठाले.हर आदमी के भीतर एक हिंसात्मक प्रवृत्ति होती है। मेरा यह स्केच आदमी की उस हिंसात्मक प्रवृत्ति को समर्पित है.मैंने इसका नाम इसलिए "आदमी का व्याघ्र मन" रक्खा है.मैंने पूर्व में २ मार्च को "व्याघ्र मन " शीर्षक से एक रंगीन चित्र अपलोड किया था जो हाल में ही बनाया था..दोनों का थीम एक ही है पर तरीका व्यक्त करने का अलग अलग .
यह स्केच मैंने यूँ ही प्रशिक्षण के दौरान बैठे बैठे चंद मिनटों में बनाया था...यहाँ मैंने शिव और शक्ति को एकाकार करने की कोशिश की है.पता नहीं कहाँ तक सफल हुआ हूँ.
यह स्केच अभी हाल में ही मैंने खींचा था...श्वेत श्याम स्केच के माध्यम से अपनी सोच को प्रगट करना मुझे ज्यादा भाता है...सफल कहाँ तक होता हूँ ,मैं कह नहीं सकता .
हर व्यक्ति के भीतर एक व्याघ्र रुपी हिंसात्मक प्रवृत्ति होती है...चाहे वह सदियों में एक बार ही अपना सर उठाये..कोशिश की है उसे चित्रित करने की...कितना सफल हुआ कह नहीं सकता...पर खुद को आइना दिखाया है ताकि खुद को संवर सकूँ.