रविवार, 17 अप्रैल 2011

हरी आँख का समंदर

यह स्केच १९८८ में बनाया था मैंने और इसका शीर्षक रक्खा था "हरी आँख का समंदर"...
मुझे आज भी ये आँखें बरबस अपनी ओर खींचती हैं ।

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

व्यक्तित्व की विकृति


इस स्केच का नाम मैंने 'व्यक्तिव की विकृति' रक्खा है। इसको स्केच करने के बाद मैंने कुछ पंक्तियाँ लिखी जो शायद आप पढ़ पायें..आपकी सुविधा के लिए दुबारा उसे नीचे प्रस्तुत कर रहा...


"वह लड़ता रहा समय से -


और कभी न जीता....


इसलिए वह,


असमय ही बूढा हो गया -



लड़ते लड़ते अपना....




अर्थ ही खो गया। "

रविवार, 10 अप्रैल 2011

पशु वृत्ति

वर्ष १९९० में बनाया गया यह स्केच मनुष्य के भीतर की पाशविक प्रवृत्ति को दिखता है...हालाँकि इस पशुता में हिंसा नहीं जो ब्याघ्र मन में है...इस पशु वृत्ति की आँखें हिंसक नहीं वरन प्रेम से सराबोर हैं.

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

चेहरे

इस चित्र का नाम मैंने "चेहरा" रक्खा है...इसे बनाते समय शायद सर्रे के सारे चेहरे गड्ड मड्ड हो गए से लगते हैं....यही विडम्बना है की हम समझ नहीं पाते उनकी महत्ता...

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

आदमी का व्याघ्र मन


यह स्केच १९८८ में ही बनाया गया था यूँ ही बैठे ठाले.हर आदमी के भीतर एक हिंसात्मक प्रवृत्ति होती है। मेरा यह स्केच आदमी की उस हिंसात्मक प्रवृत्ति को समर्पित है.मैंने इसका नाम इसलिए "आदमी का व्याघ्र मन" रक्खा है.मैंने पूर्व में २ मार्च को "व्याघ्र मन " शीर्षक से एक रंगीन चित्र अपलोड किया था जो हाल में ही बनाया था..दोनों का थीम एक ही है पर तरीका व्यक्त करने का अलग अलग .

रविवार, 3 अप्रैल 2011

एक दूजे के लिए

वर्ष १९८८ में बनाया गया यह स्केच आज भी मुखर है....क्या आप इसकी आवाज़ सुन पा रहे?

शनिवार, 2 अप्रैल 2011

शिव-शक्ति

यह स्केच मैंने यूँ ही प्रशिक्षण के दौरान बैठे बैठे चंद मिनटों में बनाया था...यहाँ मैंने शिव और शक्ति को एकाकार करने की कोशिश की है.पता नहीं कहाँ तक सफल हुआ हूँ.