यह स्केच १९८८ में ही बनाया गया था यूँ ही बैठे ठाले.हर आदमी के भीतर एक हिंसात्मक प्रवृत्ति होती है। मेरा यह स्केच आदमी की उस हिंसात्मक प्रवृत्ति को समर्पित है.मैंने इसका नाम इसलिए "आदमी का व्याघ्र मन" रक्खा है.मैंने पूर्व में २ मार्च को "व्याघ्र मन " शीर्षक से एक रंगीन चित्र अपलोड किया था जो हाल में ही बनाया था..दोनों का थीम एक ही है पर तरीका व्यक्त करने का अलग अलग .
bahut sunder hai.........
जवाब देंहटाएंsahi hai dil ke bhaavo ko taswire bhut khusurti se batati hai...
जवाब देंहटाएंदेख लिया मन किस तरह होता है अलग अलग परिस्थितियों में ...आपका प्रयास सराहनीय है
जवाब देंहटाएंअसत्य से सत्य की ओर - अन्धकार से प्रकाश की ओर- म्रत्यु से अमृत की ओर ! ये जो प्रार्थना है उसमें मैंने भी अपनी एक लाइन जोड़ी है बचपन से ही - मन से अमन की ओर !
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्र !
Beautiful sketch.
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