शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

ब्रम्हांड


मैंने रंगों के सीधे सादे माध्यम से ब्रम्हांड को चित्रित करने की कोशिश की है...

शनिवार, 18 जून 2011

लाये सजीवन लखन जिलाए...

इस स्केच में मैंने लक्ष्मण जी को बाण लगने के बाद श्री हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाने और राम के विलाप को दर्शाने की कोशिश की है...उम्मीद है आपको पसंद आएगा।



शुक्रवार, 3 जून 2011

गणपति कार्ड्स

गणपति तेरे रूप अनेक...
मैंने कई गणपति कार्ड्स स्केच कर रक्खे हैं ,धीरे धीरे सब आप को देख पायेंगे





सोमवार, 30 मई 2011

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ .....

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्व कार्येषु सर्वदा॥
(तीसरी प्रस्तुति )

मंगलवार, 17 मई 2011

गं गणपतये नमः

मेरे स्केचेज के फेवरिट नायक गणपति ही हैं...मैंने इनपर पूरा एक सिरीज किया है...कोशिश करता हूँ एक एक कर आपके सामने लाने की.....





सोमवार, 9 मई 2011

अक्स

अक्स ही अक्स खिल उठे मेरे इस चित्रण में....इसे पुनर्प्रस्तुत कर रहा उनके लिए जिन्होंने शायद इसे न देखा हो...


मंगलवार, 3 मई 2011

'द रियल सेल्फ '




इस स्केच का नाम मैंने रक्खा था 'द रियल सेल्फ' ..इसको उल्टा पुल्टा करके देखा जा सकता.इसलिए मैंने दोनों तरफ की तस्वीर आपकी सुविधा के लिए अपलोड की है..हमारे मानस में धर्म को लेकर जो उथल पुथल है ,उसको समाहित करने की कोशिश की है इसमें हमने।


सोमवार, 25 अप्रैल 2011

द ट्रिनिटी



इस स्केच में मैंने ब्रह्मा,विष्णु एवं महेश तीनो को समाहित करने की कोशिश की है...वर्ष १९८८ में बनाये गए इस स्केच का नाम रक्खा है "द ट्रिनिटी " ।

-निहार

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

मनुष्य और सर्प

इस रेखाचित्र (स्केच) का शीर्षक मैंने रक्खा है " मनुष्य और सर्प" ...शायद हमारे मन के भीतर के "दर्प" को यह प्रतिबिंबित करता है...फन काढ़े हुए हमारा 'दर्प"...जो हमारे भीतर पल रहा बन कर "सर्प"।

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

परिवार

वर्ष १९८८ में एक 'परिवार' की परिकल्पना को मैंने यूँ चित्रित किया था...

रविवार, 17 अप्रैल 2011

हरी आँख का समंदर

यह स्केच १९८८ में बनाया था मैंने और इसका शीर्षक रक्खा था "हरी आँख का समंदर"...
मुझे आज भी ये आँखें बरबस अपनी ओर खींचती हैं ।

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

व्यक्तित्व की विकृति


इस स्केच का नाम मैंने 'व्यक्तिव की विकृति' रक्खा है। इसको स्केच करने के बाद मैंने कुछ पंक्तियाँ लिखी जो शायद आप पढ़ पायें..आपकी सुविधा के लिए दुबारा उसे नीचे प्रस्तुत कर रहा...


"वह लड़ता रहा समय से -


और कभी न जीता....


इसलिए वह,


असमय ही बूढा हो गया -



लड़ते लड़ते अपना....




अर्थ ही खो गया। "

रविवार, 10 अप्रैल 2011

पशु वृत्ति

वर्ष १९९० में बनाया गया यह स्केच मनुष्य के भीतर की पाशविक प्रवृत्ति को दिखता है...हालाँकि इस पशुता में हिंसा नहीं जो ब्याघ्र मन में है...इस पशु वृत्ति की आँखें हिंसक नहीं वरन प्रेम से सराबोर हैं.

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

चेहरे

इस चित्र का नाम मैंने "चेहरा" रक्खा है...इसे बनाते समय शायद सर्रे के सारे चेहरे गड्ड मड्ड हो गए से लगते हैं....यही विडम्बना है की हम समझ नहीं पाते उनकी महत्ता...

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

आदमी का व्याघ्र मन


यह स्केच १९८८ में ही बनाया गया था यूँ ही बैठे ठाले.हर आदमी के भीतर एक हिंसात्मक प्रवृत्ति होती है। मेरा यह स्केच आदमी की उस हिंसात्मक प्रवृत्ति को समर्पित है.मैंने इसका नाम इसलिए "आदमी का व्याघ्र मन" रक्खा है.मैंने पूर्व में २ मार्च को "व्याघ्र मन " शीर्षक से एक रंगीन चित्र अपलोड किया था जो हाल में ही बनाया था..दोनों का थीम एक ही है पर तरीका व्यक्त करने का अलग अलग .

रविवार, 3 अप्रैल 2011

एक दूजे के लिए

वर्ष १९८८ में बनाया गया यह स्केच आज भी मुखर है....क्या आप इसकी आवाज़ सुन पा रहे?

शनिवार, 2 अप्रैल 2011

शिव-शक्ति

यह स्केच मैंने यूँ ही प्रशिक्षण के दौरान बैठे बैठे चंद मिनटों में बनाया था...यहाँ मैंने शिव और शक्ति को एकाकार करने की कोशिश की है.पता नहीं कहाँ तक सफल हुआ हूँ.

बुधवार, 16 मार्च 2011

तेरा चेहरा यूँ नज़र आये

यह स्केच अभी हाल में ही मैंने खींचा था...श्वेत श्याम स्केच के माध्यम से अपनी सोच को प्रगट करना मुझे ज्यादा भाता है...सफल कहाँ तक होता हूँ ,मैं कह नहीं सकता .

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

देवी

या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता...
नारी तुम केवल श्रद्धा हो....
मेरी श्रद्धा के पुष्प सम्पूर्ण नारी जाति को समर्पित।

बुधवार, 2 मार्च 2011

व्याघ्र मन


हर व्यक्ति के भीतर एक व्याघ्र रुपी हिंसात्मक प्रवृत्ति होती है...चाहे वह सदियों में एक बार ही अपना सर उठाये..कोशिश की है उसे चित्रित करने की...कितना सफल हुआ कह नहीं सकता...पर खुद को आइना दिखाया है ताकि खुद को संवर सकूँ.

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

हर हर महादेव

शिवरात्रि पर आप सब को हार्दिक बधाई.ये रेखाचित्र मेरे सुकोमल महादेव की कल्पना का मूर्त रूप हैं.

मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

सोच

गहरी सोच और हमारे भीतर का द्वन्द। ये कृति १ माह पूर्व यूँ ही बैठे ठाले बनाया था मैंने.उम्मीद है पसंद आएगा.

रिश्ते

रिश्ते एक धूप छाँव की अनुभूति देते हैं...और कभी कभी बारिश की बूंदों में रहत भी.मेरे लिए रिश्ते कभी बेमानी नहीं...